नवरात्रा शुरू हो गए हैं. इन नौ दिनों में आप नारी शक्ति और देवी के नौ
रूपों की पूजा करेंगे, नौ दिनों तक अखंड ज्योत जलाएंगे, अच्छी बात. माँ के
सम्मान में नौ दिनों तक गरबा, आरती, डांडिया करेंगे, अच्छी बात. नौ दिनों
तक उपवास, व्रत, फलाहार आदि करेंगे, नंगे पाँव रहेंगे, अच्छी बात. नौ ही
दिन माँ को नए-नए प्रसादों का भोग लगायेंगे, ज्वारे उगायेंगे, प्रतिदिन
मंदिर जायेंगे, जल चढ़ाएंगे, माँ का विशेष श्रृंगार करेंगे, कन्यायों की
पूजा करेंगे, उन्हें भोजन कराएँगे, नए-नए उपहार देंगे, वह भी अच्छी बात.
जप, तप, पूजा, पाठ, भक्ति, आराधना जो कुछ भी आप करेंगे, सब कुछ अच्छी बात.
बस मेरे कुछ सवालों का जवाब दीजिये. पूजा हम उन्हीं की करते हैं ना जिनका
हम आदर और सम्मान करते हैं. तो फिर अपनी हर समस्या के लिए देवी की उपासना
करने वाले इस भारतीय समाज में कन्या के जन्म को अभिशाप क्यों माना जाता है ?
क्यों शक्ति के उस अंश को कोख में ही मार डाला जाता है ? क्यों एक ओर आप
शक्ति के जिस स्वरुप की पूजा करते हैं वहीँ दूसरी ओर उसे सम्मान, अधिकार और
बराबरी का दर्जा भी नहीं दे पाते ? क्यों हर रोज अख़बार हाथ में उठाते ही
ना जाने कितनी मासूमों की चीखों और चीत्कारों से घर गूंजने लगता है ? क्यों
नारी को संकीर्ण सोच, कुप्रथाओं, भेदभाव, अपमान, दूसरे दर्जे का मनुष्य
समझे जाने, तिरस्कार, तानों, छेड़छाड़, मार-पिटाई जैसे क्रूर व्यवहार से
रूबरू होना पड़ता है ? दहेज़, शिक्षा और नौकरी पर मनमाने प्रतिबन्ध,
बलात्कार, तेजाब डालना, डायन घोषित कर मारना-पीटना, मासिक चक्र के समय
अपवित्र समझा जाना, सिर्फ देह समझा जाना, पराया धन मानना, गालियाँ,
भद्दे-फुहड़ मजाक, और भी ना जाने क्या-क्या. कितना कहूँ, क्या-क्या बताऊँ ?
अगर हम सच में नवरात्रा मनाना चाहते हैं तो आज से और अभी से ये नौ संकल्प
लें, हमारा नवरात्रा मनाना सार्थक हो जाएगा, और इससे अच्छी बात और कोई होगी
नहीं.
- पहला संकल्प कन्या भ्रूण हत्या जैसे क्रूर विचार की हत्या का. कोख में बेटी की हत्या जैसे महापाप के प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से कभी भी भागीदार नहीं बनने का. अपने बेटे और बेटी में भेदभाव नहीं करने का. समय की मांग भी यही है कि बेटे और बेटी की परवरिश एक जैसे की जाए. समान प्यार, समान अधिकारों के साथ ही घर और बाहर की सभी जिम्मेदारियों में उन्हें समान रूप से भागीदार बनाया जाए.
- दूसरा संकल्प दहेज़ ना देने और ना लेने का. बेटियों को अपनी संपत्ति में बराबर का भागीदार बनाने का, और विवाह को व्यापार और सौदे में ना बदलने का.
- तीसरा संकल्प अपनी झूठी शान, इज्जत और अहम् के त्याग का. जिसकी वजह से बेटी को प्यार करने की इजाजत नहीं. अपना मनपसंद जीवन साथी चुनने का अधिकार नहीं.
- चौथा संकल्प अपनी माँ और पत्नी को सम्मान और बराबरी का दर्जा देने का. स्वार्थ वश, मोह वश या किसी भी कारण से किसी एक की उपेक्षा ना हो इसका खयाल होना चाहिए.
- पाँचवा संकल्प हर ऐसे कार्य की तिलांजलि का जिसमें अंधविश्वासों के नाम पर कभी नारी को अपवित्र समझा जाता है तो कभी अकेली, विधवा, परितक्यता को चुड़ैल या डायन बताकर उसका बलात्कार और मारपीट की जाती है.
- छठा संकल्प नारी को सिर्फ देह समझकर यौन उत्पीड़न, छेड़छाड़, बलात्कार, फूहड़ टिप्पणियाँ, तंज, अश्लील इशारों, तेजाब डालना जैसी कलुषित मानसिकता और वृतियों के त्याग का. नारी को एक इंसान समझकर उसके साथ इंसानों से व्यवहार का.
- सातवाँ संकल्प नारी को आज़ादी देने का. पर्दा प्रथा, बुरका, सिन्दूर, बिछिया, मंगल सूत्र जैसे प्रतिबन्ध और विवाह के प्रतीक सिर्फ नारी के लिए ही क्यों ?
- आठवाँ संकल्प नारी को वह सहजता भरा वातावरण उपलब्ध करवाने का जिसमें वह दिन हो या रात, किसी के साथ हो या अकेले बेफिक्र होकर कहीं भी आ जा सकें. अपने कार्य स्थल पर बिना किसी भय के काम कर सके.
- नौवां संकल्प नारी के प्रति प्यार और सम्मान का. उसके त्याग, समर्पण, सहनशीलता, ममत्व और स्नेह का मूल्य समझने का. उसके प्रति किसी भी तरह के शोषण, अत्याचार और हिंसा के परित्याग का, और इन सभी संकल्पों को याद रखने का.
नवरात्रा के इन दिनों में माँ के प्रति श्रद्धा और सम्मान का इससे अच्छा और
क्या तरीका हो सकता है ? हमें देवी नहीं बनना है, हमें बस एक इंसान समझकर
इंसानों की तरह बराबरी और न्यायोचित व्यवहार चाहिए. क्या ले सकते हैं आप ये
संकल्प ? क्या दे सकते हैं हमें अपनी पहचान, आज़ादी और अस्तित्व ?
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